रावण के १० अंतिम उपदेश - Ravan Last Words - 10 Last Advices of Ravana

रावण के १० अंतिम उपदेश - Ravan Last Words - 10 Last Advices of Ravana


रावण के १० अंतिम उपदेश - Ravan Last Words - 10 Last Advices of Ravana

1. रावण अंतिम उपदेश   


हे रामानुज:

अपने सारथी, द्वारपाल, रसोई एव 

अपने भाई के दुश्मन कभी ना बनना

वे कभी भी तुम्हें क्षती पहुचा सकते हैं। 


अर्थ:

रावण ने विभीषण जी को त्याग दिया था

धर्म एव सत्य की राह पर चलके विभीषण

जी ने प्रभु राम से शरण मांगा था। 


विभीषण जी ने श्री राम को रावण की अपार

शक्ति, आसुरी माया और रहस्यो का भेद

बताया था। 


विभीषण जी ने वानर सहित श्री राम जी को

लंका का मार्ग दीखाया। रावण के अंत 

के बाद विभीषण लंका के

महाराज बने। 



2. रावण अंतिम उपदेश  


हे लक्ष्मण:


यह तुम कभी ना सोचना की तुम सर्वदा ही

विजयी बनोगे, भले ही तुम अपने जीवन काल

मैं अजय रहे हो। 


अर्थ:

इस संसार में कोई नहीं जानता की

भाग्य कब तुम्हारे ऐसे परिस्तिथि

मैं डालदे जहां तुम्हे हार के सीवा 

कुछ प्राप्त नहीं होगा। 


हमें एक न एक दिन मृत्यु के आगे

झुकना ही होगा, इसिलिए अपने जीवन

के युद्ध में असफलता का सामना करो

और जीवन मैं आगे बढ़ो। 


3. रावण अंतिम उपदेश  


हे सुमित्रे:


कभी यह मत सोचो की तुम्हारा

शत्रु तुमसे तुच्छ या शक्तिहीन है। 


अर्थ:

 रावण ने अपने जीवन काल में

मनुष्‍य, बंदर और भालू को तुच्‍छ

और अक्षम समज लिया था। 

और इसी कारण रावण अपने युद्ध में

पराजय हो गए। 


जब रावण ने ब्रम्हा जी से अमरता का

वरदान मांगा था, तो उन्होंने कहा

की केवल बंदर, मनुष्‍य के अलावा कोई

तुम्हे पराजय नहीं कर सकता है। 


रावण अपने अहंकार मैं आके

बंदर एव मनुष्य श्री राम से

पराजीत हुआ। 


रावण के १० अंतिम उपदेश - Ravan Last Words - 10 Last Advices of Ravana

4. रावण अंतिम उपदेश  


हे दशरात्मज:


जो ख्याति एव यश प्राप्ति 

के लिए उत्सुक हो

लोभ नामक नाग से दूर रहना 

चाहिए।


जब भी यह लोभ अपना 

फन उठाने को प्रयत्न 

करे उसके फन को उसी 

क्षण कुचल देना चाहिए।


अर्थ:

 रावण एक बहू भक्षक 

और लोभी बन गया था

सत्ता के लिए साम्राज्य 

के लिए भूमि के लिए

शक्ति के लिए और धन के लिए


 लोभ बढ़ते बढ़ते कब 

रावण को निगल गया

पता नहीं चला, रावण की 

सारी शक्ति, सारा ज्ञान

वर्दान, बुद्धि इस लोभ 

नामक सर्प ने निगल लिया


अधिक लोभ तुम्हें कुकर्म, 

घोर पापी बना देता है। 

इसलिये जो तुम्हें मिला है 

उसी में संतोष रहना सिको। 


5. रावण अंतिम उपदेश  


हे सुमित्रे: 


एक राजा को किंचित शीतलता के बिना राज्य

एव उसकी प्रजा का भला करने के निमनातर

अवसर का स्वागत करना चाहिए। अपने प्रजा

की देखभाल अपने पुत्र के भाती करनी

चाहिये जो कुछ भी अपने राज्य को खुशहाल

बनाता हो वही वास्तव में एक राजा को

सुखी बनाता है। 


अर्थ:

 अपने जीवन काल में रावण ने केवल अपने

अहंकार एव लोभ को ही सर्वोपरि समझा

इस्लिये रावण एक ब्रह्मज्ञानी और महान

शिवभक्त होते हुए भी पाप कर्मो मैं

लुप्ट ​​हो गए। 


रावण के इतने अप्राधो को 

नज़र अंदाज़ करते 

हुए श्री राम ने शांति प्रस्थान भेजा था

लेकिन अहंकारी रावण ने श्री राम जी का

शांतिप्रस्ताव ठुकरा दीया। 


और यह रावण का अहंकार 

पुरे लंका के

विनाश के कारण बना। 


रावण के १० अंतिम उपदेश - Ravan Last Words - 10 Last Advices of Ravana


6. रावण अंतिम उपदेश  


हे रामानुज:


सर्वदा ऐसे मंत्री पर विश्वास करना

जो राजा तुम्हारी आलोचना करता है। 

जो बिना किसी भय के राजा के समक्ष ही

निंदा करेगा वह बिना किसी भय के ऐसा करता

है चुकी वह राजा को प्रसन्ना करने हेतु उसे

मिथ्या नहीं कहता है वही सर्वदा यही चाहता है

की तुम एक आदर्श राजा बनो। 



अर्थ:

विभीषण ने रावण को हमेश 

सही सलाह दिया था। 

लेकिन विभीषण के अलावा कोई 

दूसरा मंत्री रावण को

सलाह नहीं देता था। 


रावण के क्रोध से डरके सभी मंत्री 

रावण का जयगान करते थे। 

 रावण ने सर्वदा ही उसके चाटुकार 

मंत्री और सदास्यो के बात

को सुना था। 


7. रावण अंतिम उपदेश  


हे लक्ष्मण:


कभी यह न सोचना की तुम 

अपने भाग्य के ग्रहो और

नक्षत्रो को मात दे सकेे हो 

वह तुम्हारे लिए वही


लाएंगे जो तुम्हारे भाग्य 

में लिखा होगा कोई भी

मणि या रत्न आदि तुम्हारा 

भाग्य नहीं बदल सकता है


तुम्हारा अतित एव वर्तमन के 

कर्म फल को प्रप्त करते से तुम

कोई रोक नहीं सकता है तुम्हारे

 कर्म एव तुम्हारे ग्रह तुम्हारे

एंटीम भाग्य को निर्धारित करेंगे



अर्थ:

रावण पहले जानता था 

की कू कर्म करने से

सुफल प्राप्त नहीं हो सकता है, 


रावण ने नवग्रह एव काल को 

अपना बंदी बनाया था, 

रावण के कर्म फल

अनुसर उसका भाग्य 

निर्धारित हो गया था। 


जितने चाहो अंगुठी पेहेन लो 

अथवा यज्ञ हवन करलो

परंतु तुम्हारा भाग्य तुम्हारे 

कर्म निर्धारित करेगा। 


8. रावण अंतिम उपदेश  


हे सुमित्रा नंदन:


सफल चाहने वाले व्यक्ति को किसी भी शुभ

कार्य को अति शिग्र पूर्ण करना चाहिए एव

सभी शुभ कार्यो यथसम्भव टालते रहना

चाहिये। 



अर्थ:

रावण अपने कू कर्मो मैं डूब कर

सुकर्म करने भूल गया था। 

रावण चाहता था की वो एक स्वर्ग तक

पहुचने के लिए सीढी का निर्माण करे,


रावण ने सोच था की वो चंद्रमा से अमृत

को निकाल लेगा, रावण के उपदेश में कहां

काल करे सो आज कर आज करे सो अब। 


9. रावण अंतिम उपदेश  


हे भरतानुज: 


अपने जीवन के रहस्यो को 

कभी किसी के आगे

उजार न करना क्यों की 

तुम्हारे जीवन के


यह रहस्य तुम्हारे ही 

विरुध उपयोग किया जा

सक्ता है। 



अर्थ:

रावण ने विभीषण जी को अपने गुप्त रहस्यो

को बताया था।  मेघनाद ने दो बार युद्ध में

लक्ष्मण जी को मृत्यु द्वार पर ढकेल दिया था। 

विभीषण जी ने ही मेघनाद के वध का मार्ग

देखाया था। 


मेघनाद के मृत्यु का मार्ग केवल रावण

विभीषण एव स्वयं मेघनाद को ही पता था

विभीषण जी ने रावण के मृत्यु का मार्ग श्री

राम को बताया था। 


जीवन के गुप्त रहस्यो को अपने 

पास ही रखना ऊचीत होता है। 


10. रावण अंतिम उपदेश  


ओ रामानुज:


ईश्वर से या तो प्रेम करो या तो घृणा

परन्तु तुम जो भी करो वह

अपार एव द्रिढ़ होना चाहिए। 



अर्थ:

 अगर तुम भक्ति करना चाहते हो तो

एक निष्ठा से भक्ति करो, अपने इष्ट को

ही ध्यान एव ज्ञान में रखना चाहिए। 

इष्ट को पूर्ण भक्ति से प्रसन्ना करो

ना की सामाजिक समस्यो के प्रश्नों से


अपने इष्ट को जाना एक 

उनको ही समस्त:

सृष्टि मैं ढूंढने की चेष्टा करना चाहिए। 

और अगर तुम्हें शत्रुता करना 

हो तो रावण जैसी करो। 


रावण ने श्री राम जी को 

हमेश एक तुछ मनुष्य

समझा था रावण ने अनेक 

अप्राध किए थे जैसे प्रभु

श्री राम को ठेस पहुचा था। 


प्रभु से ऐसी घोर शत्रुता 

के कारन उनके हाथो

रावण का वध हुआ। 

यह कहते हुए रावण ने श्री 


प्रभु राम का नाम लिए

और अंतिम सांस लेते हुए अपने 

जीवन को त्याग दिया

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